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पृष्ठ:बाल-शब्दसागर.pdf/८१

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जिससे प्राणियों का रूप अर्थात् वर्ण, विस्तार तथा आकार का ज्ञान होता है। नेत्र । लेाचन । २. दृष्टि । नज़र | ध्यान । ३. विचार । विवेक । परख । शिनाखत | पहचान । ४. कृपादृष्टि | दया भाव । ५. संतति । संतान | लड़का बाला । ६. आँख के आकार का छेद वा चिह्न । जैसे- सूई का छेद । आँखड़ी | -संज्ञा स्त्री० दे० "आँख" । खफोड़ टिड्डा - संज्ञा पुं० १. हरे रंग का एक कीड़ा या फतिं गा । २. कृतघ्न । बेमुरौत | आँखमिचौली, आँखमीचलो-संज्ञा स्त्री० लड़कों का एक खेल जिसमें एक लड़का किसी दूसरे लड़के की आँख मूँदकर बैठता है और बाकी लड़के इधर-उधर छिपते हैं जिन्हें उस श्रख मूँदने वाले लड़के को ढूँढ़कर छूना पड़ता है । श्राँग | -संज्ञा पुं० अंग । आँगन-संज्ञा पुं० घर के भीतर का सहन । आंगिरस -संज्ञा पुं० [सं०] अंगिरा के पुत्र । वि० अंगिरा संबंधी। अंगिरा का । आँगी* +-संज्ञा स्त्री० दे० "अँगिया" । गुरी - संज्ञा स्त्री० दे० " उँगली" । श्रच संज्ञा स्त्री० १. गरमी । २. आग की लपट । लौ । ३. श्राग । ४. आघात । चोट । २. हानि । आँचना* - क्रि० स० जलाना । चर -संज्ञा पुं० दे० "श्रचिल" । श्रचिल - संज्ञा पुं० १. धोती, दुपट्ट े आदि के दोनों छोरों पर का भाग । ७३ श्रवला पल्ला । छोर । २. साड़ी या ओढ़नी का वह भाग जो सामने छाती पर रहता है । श्रीजना- क्रि० स० श्रजन लगाना । श्रांजनेय-संज्ञा पुं० अंजना के पुत्र हनुमान् । -संज्ञा स्त्री० १. हथेली में तर्जनी और अँगूठे के बीच का स्थान । २. गिरह । गाँठ । घटना - कि० अ० दे० "अँटना" । श्राँटी-संज्ञा स्त्री० १. लंबे तृणों का छोटा गट्ठा। २. सूत का लच्छा । श्राँठी-संज्ञा स्त्री० १. दही, मलाई श्रादि वस्तुओं का लच्छा । २. गुठली । बीज । श्रत - संज्ञा स्त्री० प्राणियों के पेट के भीतर की लंबी नली । त्र । तड़ी । तर | संज्ञा पुं० दे० "अंतर" । आंदोलन - संज्ञा पुं० [सं०] १. बार बार हिलना- डोलना | २. उथल-पुथल करनेवाला प्रयत्न | हलचल | धूम | आँधी-संज्ञा स्त्री० बड़े वेग की हवा जिससे इतनी धूल उठती है कि चारों श्रोर अँधेरा छा जाय । अंधड़ । वि० आँधी की तरह तेज़ | श्रांध्र-संज्ञा पुं० ताप्ती नदी के किनारे का देश | श्रय-बाय - संज्ञा स्त्री० अनाप-शनाप । व्यर्थ की बात । श्रव-संज्ञा पुं० एक प्रकार का चिकना सफ़ेद लसदार मल जो अन न पचने से उत्पन्न होता है। श्रीवठ -संज्ञा पुं० किनारा । श्रवला - संज्ञा पुं० एक पेड़ जिसके