पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/१२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रूठी रानी "बस अब नही, जाओ तुम सब।" "चलो री सखियो, यहा से चले।" "चलो फिर, कुमारी जी, किसको भेज दें ?" "भारेली को भेज दो।" "ठीक है-सदेश ले जाने में वही चतुर है।" "जाओ, बकवाद न करो।" "भारेली!" "बाईजी राज।" "कुछ सुना?" "नही तो" "अम्मा को देखा?" "भरे हुए बादल-सी फिर रही है । आसू रुकते ही नहीं।" "कारण समझा?" "कारण तो समझा हुआ है-प्यारी बेटी की विदा।" "अरी बावली, मेरा तो सुहाग और रडापा सब आज ही हो जाएगा।" "कहती हू न।" "क्या बात है ?" "कान मे सुन।" "अब क्या करना चाहिए ?" "तू भेस बदलकर चुपचाप राघोजी जोशी के यहा जा और सब हाल कह आ।" "अभी चली।" "पर देख किसीको कानोकान खबर न हो।" "क्या आपने आज किसी कन्या के ब्याह का मुहूर्त शोधा है ?" "केवल रावलजी की कन्या उमादे का ब्याह शोधा है।" "आप नगर मे और भी कही मुहूर्त शोधते हैं ?"