पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/१२७

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रूठी रानी १२६ "सारे नगर में इस काम के लिए मैं ही बुलाया जाता हूं।" "आप जिस कन्या का लग्न-मुहूर्त शोधते हैं, वह कै घडी सुहागन रहती है ?" "तू क्या मुझसे दिल्लगी करती है ?" "नही।" "फिर?" "मैंने एक गड़बड़ी की बात सुनी है।" "कौन-सी बात?" "आप एक बार मुहूर्त शोधकर देख लीजिए।" "मुहूर्त मे खोट नहीं है।" "तो भाग्य मे खोट होगा।" "नही, मैने जन्म-पत्र देख लिया है।" "अजी कर्मपत्र तो नही देखा, आज बाईजी का कर्म फूटेगा।" "क्या रावलजी ने कुछ दगा विचारी है ?" 64 "हां।" "राम-राम, राजाओ को धिक्कार है।" "महाराज, कुछ उपाय कीजिए, धिक्कार देने से क्या होगा ?" "मैं गरीब ब्राह्मण क्या कर सकता हूं?" "सब कुछ कर सकते हैं।" "तू ही बता क्या करूं? "अच्छे जोशी हुए ! राजदरबार जाते हैं और अब मुझसे उपाय पूछते हैं !" "तू बुद्धिमती प्रतीत होती है-बता क्या करू ?" "तुरन्त राव मालदेव के यहां जाकर उन्हे सावधान कर दीजिए !" "बात तो ठीक है।" "तो मैं बाईजी से कह दू "क्या तू भारेली है ?" "जीहा।" "अच्छा कह दे, मैं अभी जाता हूं।" 65 "रावलजी की जय हो, महाराज बरौठी का मुहूर्त आ गया है, सवारी की