१५४ वीर बादल लाल-लाल आखे करके कहा-यही सुलतान की दोस्ती है ? "दोस्ती ? काफिर की और दीनदार की कैसी दोस्ती ? या तो वह परी पैकर मेरे हवाले कर, वरना चित्तौड़ की ईट से ईट बजा दूगा, और तेरी बोटिया चील और कव्वे खाएगे।" राणाने घृणापूर्ण दृष्टि से देखकर कहा-धिक्कार है तुझ विश्वासघाती पर। मुलतान ने कहा- ले जाकर बन्द कर दो बदबख्त को।-और वे तेजी से चल दिए। किले मे हाहाकार मच गया। राजपूतो ने तलवारे सूत ली। सबने इरादा किया, किले का फाटक खोल दो, और जूझ मरा । पद्मिनी ने सुना तो कहलाया- सब कोई शान्त रहे, मै महाराण की मुक्ति का उपाय करूगी। लोग आश्चर्यचकित हो महाराणा की नुक्ति की प्रतीक्षा करने लगे। "बादल, क्या तुम अपने काका जी को छुडाने का साहस कर सकते हो?" "हा काकी जी, मै अभी अपने प्राण दे सकता हूं।" "परन्तु बेटे, शत्रु छली और बली है, हमे भी छल और बल से, काम लेना होगा। "छल-बल से कैसे काकी जी?" "मैं सुलतान से कहलाए देती हू, मैं स्वयं उसके पास आने को राजी हू। आप राणा को छोड़ दे।" "छी, छी, काकी ! क्या आप उस म्लेच्छ सुलतान के पास जाएगी?" "नही बेटे, मेरी जगह मेरी डोली मे तुम जाओगे।" "क्या, मैं ?" "हा,तुम मेरी जगह । यद्यपि तुम अभी बारह साल के बालक हो, पर क्षत्रिय-पुत्र को जूझ मरने के लिए यह आयु काफी है। तुम यह काम कर सकोगे?" "मुझे क्या करना होगा ?" "तुम सब हथियार बाधकर मेरी पालकी मे बैठोगे । पालकी के साथ सात सौ डोलियों में मेरी सहेलिया होगी। प्रत्येक डोली में बादी की जगह दो-दो शूरवीर हथियार बाधकर बैठेंगे। और चार-चार शूरमा कहार का भेस धरे डोली उठाएगे, जिनके हथियार कपड़ो मे छिपे होगे।" "इसके बाद काकी जी?" $ 66
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