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पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/१७५

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१७८ नवाब ननक राजेश्वरी बिल्कुल राजा साहब के मुंह के पास खिसक गई। राजा साहब ने गुड़गुडी की सोने की मूनाल उसके होठों में लगाकर कहा- एक कश खीचो राजेश्वरी। "लेकिन, लेकिन हुजूर" "ऐन खुशी होगी, खीचो एक कश।" राजा साहब की आंखो में प्यार का सारा ही रस उमड़ आया। राजेश्वरी ने आनन्द-विभोर होकर गुडगुड़ी से कश खीचा। "खुश हुईं अब राजेश्वरी?" "ओह हुजूर, कही खुशी से मेरी छाती न फट जाए। हुजूर ने गुड़गुड़ी-खास इनायत करके मेरी सात पीढियों को तार दिया।" राजा साहब ने खिदमतगार से कहा--रामधन, चिलम ठण्डी कर दे और गुडगुड़ी उस अखबार में लपेटकर इक्के मे रख आ। राजेश्वरी का मुह सूख गया। उसने कहा-यह आप क्या कर रहे है ?" "मेरा दिल बाग-बाग है, तुम दुलखो मत।" "मगर हुजूर" "मैं हुक्म देता हू-मत बोलो।" राजेश्वरी का सिर नीचे को झुक गया। उसने खड़े होकर, झुककर राजा साहब को सलाम किया और रोती हुई चली गई। राजा साहब चित अपने पलग पर पत्थर की मूर्ति की भाति निश्चल-निर्वाक् पड़े रहे। "यह क्या तमाशा है रामधन, महाराज मिट्टी कीगुड़गुड़ी में तमाखू पी रहे हैं। गुड़गुड़ी-खास क्या हुई ?" नवाब ने कमरे मे आते ही हैरान होकर पूछा । रामधन चुपचाप खड़ा रहा । उसे बाहर जाने का इशारा करते हुए राजा साहब ने मुस्करा- कर कहा-यहां आओ नवाब, मैं बताता हूं। नवाब ननकू एकदम पलग के पास जाखड़े हुए। राजा साहब ने हंसकर कहा- बैठो। "मगर मैं पूछता हूं, गुड़गुड़ी-खास क्या हुई ?" "बैठो तो कहूं।" नवाब ने बैठकर कहा-कहिए ।