पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/१७६

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नवाब ननकू १७६ राजा साहब ने रजाई से हाथ बाहर निकालकर नवाब का हाथ पकड़ लिया। कहा-नाराज़ न हो नवाब, राजेश्वरी को दे दी। "क्या उन्होने मागी थी ?" "नही, मगर उसे खाली हाथ कैसे जाने देता। तुम देखते ही हो, खानदान की वही एक चीज़ मेरे पास बची थी।" नवाब कुछ देर होंठ चबाते रहे, फिर बोले-मगर आप मिट्टी की गुड़गुडी में तमाखू नहीं पी पाएगे। मैं गुडगुड़ी लाता हूं। "कहां से?" "घर से।" "कहां पाई ?" "अम्मी जान की है, बड़े महाराज ने बख्श दी थी। मेरे पास यह अब तक पाक धरोहर थी। अब आज काम आएगी।" राजा साहब ने कहा-बड़े महाराज ने जो चीज बख्श दी, वह मैं वापस कैसे ले सकता हूं? "तो अब हुजूर नवाब को जीने न देंगे !" राजा साहब हस दिए । मीठे स्वर से बोले-खर, इस अम्रपर पीछे गौर कर लिया जाएगा। पर मिट्टी की गुड़गुडी में तम्बाकू बहुत मीठा लगता है नवाब । हां, यह कहो, रात सामान कैसे जुटाया था ? मैं जानता हूं तुम्हारे पास छदाम नथा। 9 "जुट गया यों ही। नवाब हूं, कोई अदना आदमी नही।" "मगर सच-सच कहो।" "झूठ से फायदा? चालीस रुपये बाबू साहब से लिए थे।" "बड़ी तकलीफ दी उन्हे । अब ये रुपये दिए कैसे जाएं?" "जल्दी नहीं है सरकार, रहन पर लाया हूं। यों ही नहीं, जब हाथ खुला होगा दे देंगे।" "रहन क्या रखा?" "एक अदद था।" "क्या अदद, बताओ।" "आप तो धांधली करते हैं, आपको मतलब ?"