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पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/२१७

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कन्यादान २२१ . इसमें पवित्र वेद-मत्रो के द्वारा अग्नि को साक्षी करके पिता कन्या को जिसे देता है, वही उसका पति बनता है। आप अंग्रेजी सभ्यता और शिक्षा के भूत को सिर पर सवार करके विलायती कोर्टशिप करते है। शोक है ! सुना है, आपके पिता "मेरे पिता से आपको कोई सरोकार नही । आप ज़रा बता सकते हैं, किस वेद-मंत्र मे लिखा है कि पिता को कन्यादान का अधिकार है ?" "साफ लिखा है-ओं अमुक गोत्रोत्पन्नामिमाममुक नाम्नीमल कृतां कन्या प्रतिगृह्णातु भवान्-यह आपने नही पढ़ा ?" "नही, यह किस वेद का कौन-सा मंत्र है ?" "सस्कार-विधि में लिखा है।" "संस्कार-विधि कौन-सा वेद है-पाचवां या छठा ?" "सस्कार-विधि वेद नही है, परन्तु उसमे वेद से मंत्र लिए गए हैं।" “यही मैं पूछता हूं, किस वेद से यह मंत्र लिया गया है।" "स्नातक जी घबरा गए। वे इधर-उधर करके बोले-सारे प्रमाण तो स्मरण नही। परन्तु शोक है, आप आर्यसमाज के प्रधान के पुत्र होकर भी ऋषि-ग्रथ पर शंका करते हैं !" "शोक आपपर है कि आप आंख और अक्ल दोनों के अधे हैं। आपको बताना होगा कि उपर्युक्त वाक्य किस वेद-मंत्र मे है।" "मान लीजिए, वह वेद-मत्र नहीं है।" "तब कन्यादान किस वेद-मत्र मे है, यह बताइए।" "मनुस्मृति मे है।" "मनुस्मृति कौन-सा वेद है ?" "स्मृति सदैव ही श्रुति के अनुकूल होती है।" "मनुस्मृति किस श्रुति के अनुकूल है ?" "चारो वेदों के।" "तब चारो वेदो में से कन्यादान का अधिकार कहीं एक स्थान पर ही दिखा "अथर्ववेद मे लिखा है-'कोऽदात् कस्मै आदात।" "इसमे कन्या देने का विषय कहा? जरा इस मत्र का भाष्य तो निकालिए।" "आप कुतर्क करते है।"