पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/२१८

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२२२ कन्यादान "और आप बगलें झांकते है । मैं वेद मे कन्यादान का पिता का अधिकार देखकर उठ्गा।" "वरना?" "वरना मैं आपका माजना बिगाड़ दूगा । आपको शर्म नही आती, दूसरों के काम मे दाल-भात मे मूसलचन्द की तरह टपकते है। बात-बात पर वेद-वेद चिल्लाते है। समाज-सुधार का दम भरते है, मगर पुराने ढकोसलों के गुलाम हैं । गजों लम्बी डिग्री की दुम लगाए फिरते हैं, मगर इतना भी नहीं मालूम, वेद क्या हैं, और सस्कार-विधि या मनुस्मृति क्या है ? यही आपकी गुरुकुल की योग्यता "आप क्या मेरी परीक्षा लेते हैं ?" "मुझे इस व्यर्थ काम की फुर्सत नही । आप वेद में से यह बताइए कि किस वेद-मत्र में लिखा है कि पिता को कन्यादान का अधिकार है ?" "मैं देखकर बताऊंगा।" "कब?" "मैं आपको खबर कर दूगा।" "और जब तक आप न बताएं या वेद में आपको कन्यादान का विधान न मिले, तो आप प्रतिज्ञा कीजिए कि आप जब और जहा विवाह करेंगे, कन्या से करेंगे, उसके पिता की इच्छा से नही।" "मैं किसी प्रतिज्ञा के लिए बाध्य नहीं।" -"तब मैं इन चिट्ठियो को अदालत में पेश करूगा, और उस लड़की को भी। तब अदालत यह फैसला करेगी कि वह स्वयं ही अपने विवाह की अधिकारिणी है या उसका पिता?" "आप यदि उससे प्रेम करते है, तो आप उसे इस प्रकार जलील करेंगे ?" "और आप उस स्त्री से विवाह करेगे, जो दूसरे युवक से प्रेम करती है, जिसके प्रमाण ये पत्र हैं ?" "क्या आपको यह शोभा देता था कि उस कन्या की यह गुप्त बात औरो पर प्रकाशित करते ?" "मैं जानता हूं, आप और उसके पिता उसपर उसकी इच्छा के विपरीत अत्या- चार कर रहे हैं, तब मैं आपको वस्तुस्थिति दिखाने आया था। पर देखता हूं,