पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/२४९

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२५४ विधवाश्रम थोड़ी ही देर मे दो कान्स्टेबिलो को लेकर पुलिस इन्स्पेक्टर आ गया, और सब लोग आश्रम के द्वार पर जा धमके। द्वार पर धक्के देने पर एक आदमी ने द्वार खोला। पुलिस को देखकर वह घबराकर बोला-आप क्या चाहते है ? "मैनेजर साहब कहा है ?" "डाक्टर जी है, वे भीतर है। "उन्हे जरा बुलाओ।" चपरासी भीतर गया। सुनकर डाक्टर साहब की फूक निकल गई। वे बाहर आए और बिलैया-डण्डौत करते हुए कहा कि कोई वारदात नही है। "मगर मै मकान की तलाशी लेना चाहता हूं। po "आप ऐसा नहीं कर पाएगे।" इन्स्पेक्टर ने डाक्टर कोपीछे ठेल दिया और वे घर में घुस गए। वे सीधे उसी कमरे मे पहुचे । बाहर ताला बन्द था। उन्होने कहा-इसमें कौन है ? "इसमे एक बाबू साहब का सामान बन्द है।" "वे कहां है?" "बाहर गए है।" "इसकी ताली कहा है ?" "वह उन्हीके पास है।" "अच्छी बात है," इन्स्पेक्टर ने कान्स्टेबिल से कहा-ताला तोड़ दो। डाक्टर साहब के विरोध करने पर भी ताला तोड़ दिया गया। देखा, उसमे तीन कोठरियो मे तीन स्त्रिया कैद थी। उन्होने बयान दिए कि हमे फुसलाकर लाया गया है और शादी करने को राजी न होने पर बन्द कर दिया गया है। अधिष्ठाता जी उर्फ डाक्टर जी, उर्फ पिता जी, और धर्मपुत्री जी उर्फ अधि- ष्ठात्री देवी जी तथा गजपति जी और बलवन्त तथा उक्त तीन स्त्रियो को साथ ले पुलिस-इन्स्पेक्टर थाने को चल दिया। धर्मात्मा हवालात की शोभा वृद्धि करने लगे। . "कई स्त्रियो के गायब होने की रिपोर्ट पुलिस में प्रथम ही पहुची हुई थी। पुलस ने स्त्रियो से पूछकर उनके वारिसों को बुला लिया और सब सबूत तैयार होने पर मैजिस्ट्रेट के सामने मुकदमा दायर किया गया।