पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/२५१

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२५६ विधवाश्रम डालने की धमकी दी जाती थी। मैजिस्ट्रेट ने पूछा-तुम्हारी उम्र क्या है ? रामकली -बाईस वर्ष हुजूर। मैजिस्ट्रेट-तुम्हारे पास कुछ गहना और दूसरा सामान भी था, जब तुम आई थी? रामकली-जी हा हुजूर, दो अदद सोने तथा चार अदद चादी के गहने थे, सबकी कीमत दो सौ रुपये होगी । वे सब इन्होने छीन लिए। वहां कोष मे जमा होगे। - मैजिस्ट्रेट-और कपड़े वगैरह ? रामकली-वह सब छीन लिया। मैजिस्ट्रेट-अच्छा, तुम इधर बैठो। दूसरी लड़की को लाओ। दूसरी लडकी ने आकर बयान किया : 'मेरा नाम चम्पा है । उम्र अठारह वर्ष की है। जाति की वैश्य हू । मेरे पिता बरेली मे पुलिस-इन्स्पेक्टर थे । मै सात-आठ वर्ष की थी, तब कुछ लडकियो के साथ खेल रही थी । इतने मे एक आदमी आया, वह फुसलाकर हमे तमाशा दिखाने के बहाने थोडी दूर ले गया। हम तीन लड़किया चली। थोडी दूर पर उसने एक तागा रोककर कहा-लो इसपर बैठकर चलो, जल्दी पहुच जाएगे । हम लोग तांगे पर बैठ गए। उसने एक मकान मे हमे छोड़ दिया, वह बहुत बड़ा मकान था और उसमे बहुत-सी लडकिया थी। हम कुछ दिन घर की याद मे रो-पीटकर वहा रहने लगी। बहुत दिन बीत गए और हम घर को भूल गई । एक बार एक पजाबी-सा मोटा-ताजा आदमी मेरे पास लाया गया । वह मुझे घूर-घूरकर देखने लगा। पीछे पता लगा कि इससे मेरी शादी होगी। मै डर गई । उस आश्रम मे एक कहार का लड़का नौकर था, उसने कहा कि मेरे साथ शादी करो तो मै तुझे यहा से निकाल दू। मैं राजी हो गई और वह वहा से एक दिन शाम को मुझे निकालकर, रेल में बैठाकर मथुरा ले आया । हम लोग धर्मशाला में कहर गए। न जाने कैसे पुलिस ने भाप लिया कि यह भगाकर ले आया है। पुलिस उसके पीछे पड़ी । वह भाग गया, मै अकेली रह गई। कहा जाऊ, यह कुछ न बता सकी। पिता का स्मरण भी न था। कहां हैं, कौन है। लाचार कुछ लोगों ने मुझे वहा के विधवाश्रम मे भेज दिया। फिर वहा रहने लगा।