पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/२९

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बाचिन २६ हुक्म देकर बादशाह उठे। तुरन्त चार बादियों ने सहारा दिया। दरबारी लोग जमीन तक झुक गए। बादशाह ने युवक के निकट आकर कहा-आराम होने तक शाही महलो में रहने की तुम्हें इजाजत बख्शी जाती है और शाही हकीम तुम्हारे मालजे को मुकर्रर किए जाते हैं। युवक ने बादशाह की कदमबोसी की और पल्ला चूमा। बादशाह धीरे-धीरे अन्तःपुर मे प्रवेश कर गए। अन्त.पुर के उन झरोखो के भीतर, जहा किसी भी मर्द की परछाई पहुचनी सम्भव न थी, एक बहुमूल्य मखमली गद्दे पर वह घायल युवक पड़ा अपने प्रारब्ध- विकास की बात सोच रहा था। एक ही दुःखदायी घटना ने, जिसे शायद ही कोई निमन्त्रित करे, उसके भाग्य का पासा पलट दिया था। वह सोच रहा था, 'क्या सचमुच मेरे ये फटे चिथड़े, वह टूटा छप्पर का घर, वह माता का चक्की पीसना, सभी बदल जाएगा?' वह जागते ही जागते स्वप्न देखने लगा-एक धवल अट्टा- लिका, दास-दासी, घोड़े-हाथी, सेना और न जाने क्या-क्या ? सभी विचारधाराओ के ऊपर उसे एक नवीन विचारधारा मूछित कर रही थी -वह कौन है ? वही क्या इस सब भाग्य-परिवर्तन की कुजी नही ? पालकी के उस दुर्भेद्य पर्दे के भीतर..! वह सोच मे मूर्छित हो गया। हठात् उसकी विचारधारा को धक्का देते हुए, कक्ष का पर्दा हटाकर दो दासियो के साथ एक खोजे ने प्रवेश किया। दासियो के हाथ मे भोजन की सामग्री थी। स्वप्न-सुख की तरह कहीं वह राजभोग लुप्त न हो जाए, घायल युवक इस भय से लपककर उठा। खोजे ने कहा-खाना खा लो, और खुदा का शुक्र करो। हुजूर शाहजादी तुमपर बहुत खुश हैं, और वे जल्द तुम्हे देखने को तशरीफ लानेवाली है। चन्द्रमा की स्निग्ध ज्योत्स्ना की तरह शाहजादी ने कक्ष मे प्रवेश किया। दो अल्पवयस्का दासियां परछाई की तरह उनके पीछे थी। शुभ्र, महीन रेशमी परिधान पर जरदोजी और सलमे का बारीक काम निहायत फसाहत से हो रहा था। वह अस्फुटित कुन्दकली के समान, कोमलता और माधुर्य की मूर्तिमती रेखा