पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/८३

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आचार्य उपगुप्त "मैं स्वयं ही उनके चरणो में प्रार्थना करूगा।"-इतना कहकर उपगुप्त ने दूर खड़े दोनो युवको के निकट जा, उनकी चरण-रज मस्तक पर लगाई। लल्ल ने संक्षेप मे सब कुछ कहकर घर मे चलने का अनुरोध दिया। आसन देकर, सबके बैठने पर उपगुप्त ने कहा-आर्य ! अब अपना और इन पूज्यों का परिचय देकर कृतार्थ करें! "श्रेष्ठिराज, ये कलिगराज-महिषीपट्ट महारानी चन्द्रलेखा और ये महाराज- कुमारी शैला हैं । मगध के प्रतापी सम्राट् चण्डाशोक ने कलिंग का महाराज्य नष्ट कर डाला, एक लाख कलिंग-योद्धा रण-भूमि मे काम आए हैं । महाराज युद्ध-भूमि से लौटे नही, न उनका शरीर प्राप्त हुआ है। महाराजकुमार हरिद्वार मे स्वामी चिदानन्द के आश्रम मे गुप्त वास कर रहे है । मैं महानायक भट्टारकपादीय लल्ल है। राजपरिवार घोर विपत्ति मे पड़ गया, तब इन महिलाओं को लेकर मैं आपके पिता के आश्रय की इच्छा से चल पड़ा। धनगुप्त श्रेष्ठिराज को छोड़ और कौन इन राजअतिथियो को आश्रय दे सकता है ? चण्डाशोक ने सर्वत्र चर छोड़े है। जो कोई राजपरिवार और कुमार जितेन्द्र को पकड़ा देगा, उसे दस सहस्र सुवर्ण- मुद्राए दी जाएगी। और जो कोई उस परिवार को आश्रय देगा उसे प्राण-दण्ड होगा । श्रेष्ठिराज, इसीलिए हम आपकी इस दुरवस्था मे आपको विपत्ति में नहीं डालना चाहते थे।" उपगुप्त ने सब सुनकर कहा- राजमाता और राजपुत्री तथा आपके चरणो से यह घर पवित्र हुआ, अब आपकी सेवा से शरीर को धन्य करूगा। "परन्तु," लल्ल ने कहा, "आप अपनी पत्नी तक से यह परिचय गुप्त रखेगे और इनका पुरुष-परिचय ही देंगे।" श्रेष्ठिवर ने स्वीकार किया। . अतिथियो के विश्राम की व्यवस्था करके उपगुप्त ने अपनी पत्नी से जाकर कहा-कुन्द ! मेरे स्वर्गीय पिता के मित्र हमारे अतिथि हुए हैं, उनका आतिथ्य हमें जैसे बने करना होगा। कुन्द ने कुण्ठित होकर कहा-परन्तु स्वामिन् ! घर में तो कुछ भी सामग्री नहीं है, अतिथि खाएंगे क्या ? उपगुप्त चुपचाप पत्नी के मुह की ओर देखने लगे। उन्होंने कहा-कुन्द !