8 बा और बापू
का किसान था मजदूर ऐसा हो जो कि बापू को मनुष्य मात्र का मित्र न समझता हो। लोग समझते थे कि बापू दुनिया मे 'सतयुग' लाने वाले हैं।
बापू वचनमुक्त जीवन के जन्मदाता थे । उनको पवित्रता और तेज का प्रभाव राजा और रक, सव पर एक-सा पडता था । उनका कहना था - सच्चे रहो, और हृदय को निमल और सरल रखो, दुख मे भी प्रसन्न रहो तथा भय आने पर स्थिर रहो । जीवन मे प्रीति रखो और मृत्यु से मत डरो । बापू से लाखो-करोडो नर-नारियो को प्रेरणा मिली । उन्होंने ही भारत को आजादी दिलाई। वे ऐसे खरी-खरी कहने वाले थे कि एक बार होरेस एलेग्जेण्डर ने, जो एक नामी अग्रेज थे, जब बापू से पूछा, "क्या आप अग्रेजो के लिए कोई संदेश देंगे ?" तो बापू ने झट कहा, "सबसे पहली बात हम यह चाहते हैं कि आप लोग अब हमारी गर्दन पर सवार न रहे ।" बापू की सफलता का कारण उनका सत्य और त्याग था । लोग सेवा करते हैं और उस पूजी को लेकर खूब लाभ उठाने की खटपट करते हैं । वापू ऐसे लोगो मे नही थे। उनके जीवन का नाम ही त्याग था, वे स्वयं त्याग रूप थे । उन्ह किसी शक्ति, किसी पद पदवी या दौलत और यश का लालच न था । उनका त्याग और बलिदान इसलिए और भी महान बन गया था कि उसके साथ वे पूरे निर्भय भी थे। महाराज और सरकार सगीनें ओर बदूक, जुल्म और वान कोठरी, यहा तक कि मृत्यु भी उनके मन पर एक रेखा तक खीचने मे असमर्थ थी । वे यथाथ में मुक्तात्मा थे ।
उनके जीवन मे बचपन की मरलता, सत्य के प्रति अटल ग्रह और मानवता के प्रति अटूट प्रेम था। इन्ही सब गुणा के कारण उस महापुरुष मे ससार के भविष्य को बदलने की