पृष्ठ:बा और बापू.djvu/१६

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पुण्य स्मरण उन दिनो बापू डरबन में वकालत करते थे। तव बहुधा उनके कारकुन उन्ही के साथ रहते थे। उनमे गुजराती और भद्रासी, हिन्दू और ईसाई सभी थे। एक कारकुन ईसाई था, परन्तु उसके माता-पिता पचम जाति के थे। बापू के घर की बनावट यूरोपीय ढग की थी। कमरो मे मोरी नहीं थी। इसलिए हर कमरे मे पेशाब के लिए अलग एक बर्तन रखा रहता था। उसे साफ करने का काम नौकर नही, प्रत्युत पति-पत्नी-चापू और 'बा' किया करते थे। हा, जो कारकुन अपने को धर का ही समझने लगते थे, वे अपना बतन स्वय साफ कर डालते थे। पर ये पचम कुलोत्पन्न कारकुन नए थे, उनका वर्तन या तो बापू को या 'बा' को साफ करना चाहिए । 'बा' बापू को भला क्यो साफ करने देती? फिर भी दूसरे बर्तन तो 'बा' उठाकर साफ कर देती थी, पर इन पचम कुलोत्पन्न महाशय का बर्तन साफ करना उन्हें सहन नहीं हुआ। पति-पत्नी मे झगडा हुआ। बापू उठाते हैं, यह 'या' नहीं देख सकती थी और वे स्वय उठाना पसद नही करती थी। परन्तु हालत लाचारी की थी। 'बा' आस्रो से आसू ढरकाती लाल-लाल आखो से बापू की ओर देखती, बतन लेके सोढी उतर रही थी । बापू ने देखा तो सहन न कर सके। उन्हें तो तभी सतोष हो सकता था जब वे उसे हसते-हसते ले जाए वे गरज उठे, "मेरे घर मे यह ढग नहीं चल सकता।" 'वा'भीखोल उठों-बोली, "तो अपना घर अपने पास रसो,