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बैरिस्टर का घर सन् 1905 मे बापू जोहान्सबर्ग मे वैरिस्टरी करते थे। उस समय के बापू की गृहस्थी का वर्णन श्रीमती पोलक ने अपनी पुस्तक 'गाधी-द मैन' में इस प्रकार किया है "धर शहर के बाहर एक अच्छे मध्यम श्रेणी के लोगो के मुहल्ले मे था । दुमज़िला और अलग अहाते वाला बगलानुमा घर था। अहाते मे वगीचा था और सामने छोटी-छोटी टेकरियो वाला खुला मैदाा था। मकान मे कुल आठ कमरे थे। दुमजिले पर का बराडा लम्बा-चौडा और खूब हवादार था । गर्मियो मे वहा सोया जा सकता था। सोने के लिए ही उसका उपयोग होता था। ___ "परिवार में गाधीजी, उनकी पत्नी और तीन बालक थे। मणिलाल ग्यारह साल के थे, रामदास नौ और देवदास छ साल के थे। हरिलाल उन दिनो देश गए हुए थे। इनके सिवा तारघर मे काम करने वाले एक नवयुवक अग्रेज़, गाधी जी के एक हिन्दुस्तानी युवक सम्बन्धी और श्री पोलक, इतने लोग और थे। मैं उनमे आ मिली, जिससे मकान मे और अधिक के लिए सहलियत नही रह गई। 'सवेरे छ बजे घर का पुरुष वर्ग चक्की पीसता था क्योकि रोटी घर ही मे बनाई जाती थी। एक कमरे मे चक्की रखी गई थी, वही सब इकट्ठे होते थे। पीसने का काम तो कोई घण्टे मे समाप्त हो जाता था, किन्तु चक्की की आवाज़ बातचीत और हसी की होती थी। उन दिनों हसी के फव्वारे घर में बराबर छूटते