पृष्ठ:बा और बापू.djvu/१९

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अनेक विषया की चर्चा हुआ करती थी। परतु विषय साधारण 18 वा और यापू रहते थे। उपयोगिता की दृष्टि से इस काम के महत्त्व के सिवा इससे प्रात अच्छी कसरत भी हो जाती थी। दूसरी कसरत रस्सी फुदान की होती थी, बापू इसमे उस्ताद थे। "घर मे सध्या की ब्यालू का समय अधिक से अधिक आनन्द भय रहता था। घर के सभी लोग उसी समय एक जगह जमा होते थे। बापू को मेहमानदारी का बहा शौक था, इसलिए ऐसा दिन कदाचित् ही कोई वीतता, जब कोई न कोई मेहमान न आ जाता हो । प्रतिदिन सायकालीन भोजन में दस से पद्रह तक आदमी अवश्य होते थे। भोजन की चीजें बहुत सादी होती थी । मेज पर सब चीजें सजाकर ही खाने बैठते थे, इसलिए परोसने के लिए नौकर के खडे रहने की आवश्यकता नही रहती थी। भोजन से पहले दो-तीन साग, भाजी, कढी, दाल, सिकी हुई रोटिया, मूग- फली या किसी दूसरी चीज़ को पीसकर बनाया गया मक्खन भिन्न भिन्न सागो को काटकर बनाया हुआ कचूमर, ये चीजें परोसो जाती थी। दूसरी दफा दूध और फल, ऋतु के अनुसार काफी, लेमोनेड भी दिया जाता था । भोजन करने में जल्दी नही की जाती थी। मेज पर पूरा एक घटा लग जाता था। खाते-खाते तया हसी मजाक और गपशप तथा हलके होते थे। कोई भी हस को बात निकलने पर बापू खूब हसते थे।"