पृष्ठ:बा और बापू.djvu/२०

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1 बापू का वैभव बात फिनिक्स आश्रम की है । सन् 1913 का साल था। एक दिन प्रात काल कोई 11 बजे बापू खाने को मेज पर बैठे भोजन कर रहे थे। उनके पास उनके परिवार के एक बुजुर्ग कालीदास गाधी, रावजी भाई और मणिभाई पटेल बैठे थे। कालीदास गाधी टूटाग में रहते थे और वहा से कुछ दिन के लिए आए थे। 'बा' खडो-खडी रसोई घर मे सफाई का काम कर रही थी। सव लोग पहले ही खा-पी चुके थे। दक्षिण अफ्रीका में मामूली व्यापारी के यहा भी घर के कामकाज के लिए नौकर-चाकर रहते थे। यहा 'बा' को सब काम करते देख कालीदास भाई ने बापू से कहा, "भाई, तुमने तो जीवन में बहुत हेरफेर कर डाला । बिल्कुल सादगी अपना ली। इन कस्तुर वाई ने भी कोई वैभव नही भोगा।" बापूने खाते-खाते कहा "मैंने कब इन्हे वैभव भोगने से रोका।" 'या' ने तुरन्त हसते हसते कहा "तो तुम्हारे घर मे मैंने क्या वैभव भोगा है?" बापू ने हसते-हसते कहा, "मैंने तुझे गहने पहनने से या अन्छौं। रेशमी साडिया पहाने से कब रोका है ? जब तूने चाहा, तब तेरे लिए सोने की चूडी भी बनवा लाया था न ?"