पृष्ठ:बा और बापू.djvu/२२

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दुख मे विनोद उन दिनो बापू दक्षिण अफ्रीका में रह रहे थे । सन् 1913 की बात है। आजकल जेल जाना बहुत आसान बात हो गई है, परन्तु उन दिनो तो जेल के नाम से लोग काप जाते थे। और यह तो कोई कल्पना भी नही कर सकता था कि कोई भले घर की महिला भी स्वेच्छा से जेल जा सकती है। उन दिनो दक्षिण अफ्रीका में एक ऐसा कानून पास हुआ था कि ईसाई धर्म के अनुसार किए गए विवाह के सिवा जो विवाह- विभाग के अधिकारी के यहा दर्ज हुए हो-दूसरे सब विवाह- जो हिन्दू मुसलमान-पारसी आदि धर्मों के अनुसार किए गए हो- रद्द मान लिए गए। इसका यह अथ था कि सब विवाहिता भार- तीय महिलाओ का दर्जा उनके पति की धम पत्नी का न होकर रखेली का मान लिया गया। यह एक ऐसी अपमानजनक बात थी, जिसे कोई स्त्री-पुरुष नही सहन कर सकता था । बापू ने वहा को सरकार से इस कानून को रद्द करने की बातचीत की, परन्तु सर- कार ने एक न सुनी । तब बापू ने 'सत्याग्रह' की लडाई छेह दी, और उसमें सम्मिलित होने के लिए महिलाओ को भी न्यौता दिया। परन्तु 'बा' से कुछ नहीं कहा । उन्होंने सोचा, मैं कहूगा तो वह इकार नही करेगो, पर उसको हा की कीमत क्या वे चाहते थे कि जोखिम के कामो में स्त्री स्वय ही जो निश्चय करे, यही पुरुष को मान लेना चाहिए । तथा वह कुछ भी न करे तो पति को उसके सम्बध मे कुछ दुख नही करना चाहिए। है