पृष्ठ:बा और बापू.djvu/३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

'ही आलवेज़ मिसचीफ सन् 23 या 24 की बात है। बापू यरवदा जेल के कैदी थे। एक बार उन्होंने जेल सुपरिण्टेण्डेण्ट से एक कैदी की खुराक के सम्बन्ध मे कुछ माग की, परन्तु सुपरिण्टेण्डेण्ट ने उसे नामजूर कर दिया। बापू ने इसके विरोध में अपना नियमित भोजन त्याग दिया और केवल दूध पर रहने का निश्चय किया। इस तरह चार सप्ताह बीत गए और बापू कुछ कमजोर हो गए। इस समय 'बा' उनसे मिलने जेल में गई, तो जीना चढते हुए बापू के पैर लडखडा गए । बापू की यह शारीरिक कमजोरी 'बा' को साव- धान निगाहो से न छिपी। उहोने इसका कारण पूछा और बापू को सच्ची बात कहनी पडी। इसपर 'बा' और उनके साथ जाने वाले परिजनो ने बापू से फल लेने का हठ किया। जेल का अग्रेज़ सुपरिण्टेण्डेण्ट भी उस समय वही खडा था-उसने 'बा' को जब बापू पर दबाव डालते देखा, तो कहा, "देखिए, मिस्टर गाधी जो ये सब करते हैं, इसमे मेरा कोई दोष नही है।"'बा' ने जवाब fahr, "Yes, I know my husband He always mischief" 'बा' ने अपनी टूटी-फूटी अंग्रेजी के इन दो ही वाक्यो मे बापू के सारे चरित्र का निरूपण कर डाला । इसका मतलब यह था कि वह कभी चुप बैठने वाले नहीं हैं, उन्हे रोज़ एक न एक शरारत सूझती ही रहती है। जब से दक्षिण अफ्रीका पहुचे, तब से अत तक अपने जीवन के इक्यावन वर्षों मे कभी चैन से नही बैठे।