पृष्ठ:बा और बापू.djvu/४१

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40 बा और बापू 'वा' ने मोसम्मी हाथ मे ले ली । परतु हरिलाल भाई को इससे सतोप नही हुआ । उन्होंने कहा, " 'वा' यह मोसम्मी आप ही को खानी है, आप न खाए तो मुझे वापस दे दें।" "रह-रह, यह मोसम्मी मे ही खाऊगी।" कुछ देर वे पुत्र को एकटक निरखती रही, फिर बोली, "तू अपना हाल तो देख, और तनिक सोच तो सही कि तू किसका बेटा है । चल, हमारे साथ चल।" ?" इस पर हरिलाल भाई ने भीगे स्वर मे कहा, "इसकी तो वात ही न करो 'वा', मैं अब इस हालत से उवर ही नहीं सकता।" 'वा' की आखें छलछला आईं।गाड ने सोटी दी, ट्रेन चली। चलते-चलते हरिलाल भाई ने फिर कहा, "'बा',मोसम्मी तो तुम्ही खाना भला जव गाडी आगे बढ गई तब 'बा' को अचानक ध्यान आया कि उहोंने पुत्र को तो कुछ दिया ही नहीं। अरे, बेचारे को फल- घल कुछ नहीं दिए, भूसो मरता होगा। देखू, अब भी कुछ दे सकू तो- उहोंने जल्दी-जल्दी डलिया मे से फल निकालकर बाहर देखा तो ट्रेन प्लेटफाम पार कर चुकी थी।