'बा' की तत्परता 'वा' सदैव प्रात काल चार बजे प्रार्थना के समय उठती। प्राथना के बाद बापू की आध-पौन घण्टा सो जाने की आदत थी, पर तु 'वा' उठने के बाद फिर नही सोती थी। वे वापू के फिर से जागने के पहले उनके लिए गम पानी और शहद या जो कुछ भी वे प्रात लेने वाले हो, तैयार करने-कराने मे लग जाती थी। बापू फे ऐसे निजी कार्यों के करने की बहुतो की इच्छा रहती और कभी-कभी आपस मे इसके लिए होडा-होडी भी होती। 'बा' ऐसे व्यक्तियो मे काम बाट देती थी, परन्तु काम चाहे किसी के भी सुपुद किया गया हो, 'या' सामने खडी रहकर देखती रहती कि सब ठीक हो रहा है या नहीं। चीज़ अच्छी तरह बनो है, यह 'बा' स्वय देवकर वापू के पास ले जाती थी, और जब तक वे उसे खा- पी न लें, स्वय उनके पास बैठी रहती थी। फिर यह भी देखती कि बतन ठीक तौर पर साफ करके अपनी जगह रख दिए गए हैं या नही । यदि बर्तनो की सफाई मे तनिक भी दोष दीख पडा तो 'बा' स्वय उसे फिर से अपने हाथो से साफ करती थी। प्राय सात बजे प्रात बापू घूमने निकलते थे। उस समय 'बा' अपने स्नान आदि नित्यकार्यों से निपटकर पूजापाठ से बैठ जाती। घी के दिए और अगरबत्ती की धूप के साथ लगभग एक घण्टा गोता, तुलसी रामायण का पाठ करती। इसके बाद वे रसोईघर में पहच जाती । वहा कहा क्या हो रहा है-उसे वे सुरन्त एक ही निगाह मे देख लेती । वे बडी स्पष्ट वक्ता थी
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