पृष्ठ:बा और बापू.djvu/४४

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लग' की तत्परता 43 फिर रसोई में जा पहुचती, वहा वापू का खाना तैयार कराती। पाच बजे बापू खाने बैठते तव उनके पास बैठती। वे कई साल से एक वक्त खाती थी। रात को केवल एक प्याला काफी पी लेती यो। परन्तु मृत्यु से चार साल पहले से उहोने वह भी छोड दिया था, दूध में तुलसी और काली मिच डालकर उसे थोडा उबालती और पी लेती थी। सन्ध्याकाल जब बापू घूमने जाते 'बा' आश्रम में कोई बीमार रहा हो तो उसके पास बैठती, फिर दूसरी बहिनो के साथ वे भी घूमने जाती और आश्रम से कुछ दूर जाने पर जब वापू वापस आते दीखते तो वे भी उनके साथ हा जाती। घूमकर आने के बाद साय प्राथना होती। उसमे रामायण गाई जाती। तब 'बा' उसमे सम्मिलित होती और प्रार्थना के बाद बापू के सोने की तैयारी में लग जाती। सोने से पहले बापू के सिर मे तेल मलने का काम लगभग अन्त तक वे नियमित रूप से स्वयं करती रही।