पृष्ठ:बा और बापू.djvu/७

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बहे सत और महात्मा बन गए। इसी तरह 'बा'साथ रहकर 6 बा और बापू में बापू इन दोनो के बारे मे अज्ञानी थे। जिस तरह उहोने हिन्दू धम को पूरी तरह बिना जाने ही अपना धार्मिक जीवन आरम्भ किया, उसी तरह 'बा' के महत्त्व और गुणो को बिना जाने- पहचाने उहोने अपनी गृहस्थी शुरू की। परतु उहोंने इन दोनों को समझने की भरपूर चेष्टा की, दोनो को श्रद्धा और प्रेम से अपनाया और इन दोनो की मदद से अपने जीवन को सफल दिया। उहोंने हिदू घम के मर्म को समझा और उसे नया रूप दिया। और फिर उसीफे प्रभाव से वे माज की दुनिया के सबसे उन्नीस साल की उम्र मे यह बैरिस्टर बनने विलायत गए। अब तक इनके दो बच्चे हो चुके थे। बैरिस्टर बनकर जब ये भारत आए, तब यहा इनकी बैरिस्टरी नही चली। इसी बीच इन्हें एक मुकदमे के सिलसिले मे दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। ये चहा के भारतीयो के कष्टो को देखकर उनके साथ वहा की सर- कार से उलझ बैठे। फिर तो उनकी, वहा की सत्याग्रह की लडाई दुनिया भर में मशहूर हो गई। बापू 'बा' से बहुत प्रेम करते थे। उन्होने लिखा है, "यदि में अपनी पत्नी के सम्बन्ध में अपने प्रेम और अपनी भावना का बखान कर सकू तो हि दू धर्म के बारे में अपने प्रेम और अपनी भावनाओ को प्रकट कर सकता है। दुनिया मे विसी भी स्त्री के मुकाबले मेरी पत्नी ने मुझपर अधिक प्रभाव डाला है।" वापूग उनके जीवन मे दो वस्तुओ ने राह दिखाई है-एक हिंदू धर्म ने और दूसरी 'बा' नेहम दोनो जीवनदायी शक्तियो के सम्बन्ध मे मजे की बात यह है कि बापू इनमे से एक को भी पसद करने नही गए । 'हिन्दू घम' जाम के साथ मिला और 'बा' बचपन मे । जिस तरह धर्म माता-पिता का मिला, उसी तरह 'वा' भी उनके माता-पिता ने ला दी। अपने जीवन के आरम्भ