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बापू 7
 


वे पति-पत्नी के सम्बन्धो और गृहस्थी-जीवन को पवित्र बनाते गए और अपने युग के करोडो स्त्री-पुरुषो के 'बापू' बन गए।

'बापू बडे ज़िद्दी और धुन के पक्के थे। किसी न किसी शारी- रिक कष्ट को भोगने का उनका आग्रह बना ही रहता था। दक्षिण अफ्रीका मे सन् 1904 में बापू के जीवन ने करवट लेना आरम्भ किया और उनमें क्रान्तिकारी उलट-पलट हुई। उनके जीवन की उलट-पलट का उनका आग्रह इतना तेज़ और ज़बर्दस्त था कि उनके सगे-सम्बन्धियो और मित्रो को भी उनका साथ निभाना दूभर हो गया। उनका प्रेम एक तरह का जुल्मी प्रेम था।

इसीसे स्वर्गीय गोखले ने एक बार उन्हे हसी-हसी मे कहा था, "गांधी, तुम बडे जालिम हो। एक ओर से तुम्हारा प्रेम और दूसरी ओर से तुम्हारा आग्रह, दूसरे पर इतने ज़ोर से असर करते हैं कि बेचारा तुम्हारी इच्छा के अनुसार चलने और तुम्हे खुश करने को मजबूर हो जाता है।"

श्रीमती सरोजिनी नायडू भी बहुधा बापू को अपने पत्रो मे, 'माई डियर टायरैट' (मेरे प्यारे ज़ालिम) लिखा करती थी। बापू का तप सूरज की तरह तपता रहा। सूरज का ताप जैसे दुनिया के लिए होता है, उसी तरह बापू का ताप दुनिया के लिए कल्याणकारी था। परतु जैसे सूरज के ताप से बहुत पास जाने वाला जल जाता है, उसी तरह बापू के बहुत पास रहना भी आसान न था। बापू के पास रहना एक बडी तपस्या थी। 'बा' उनकी तपस्या की जीती-जागती साधना थी। 'बा' के प्रभाव से बापू के पास रहने वाले बापू के ताप से झुलसने से बचे रहते थे। उन्ही के कोमल प्रेमी स्वभाव से साधारण जन भी आश्रम मे रह सके।

बापू का नाम देश-देशातरो मे दूर-दूर तक फैला हुआ था। उनका नाम इतना परिचित हो गया था कि शायद ही किसी देश