रह सकूँगी; मुझे अलग झोपड़ा डाल दे; मैं वहीं पड़ी
रहूँगी । जिस घर में बहू सास को मारने के लिए
खड़ी हो जाय वहाँ रहने का धरम नहीं। यह कहते-
कहते माँँ जी जोर-जोर से रोने लगीं ।”
भामा ने देखा कि बात बहुत बढ़ गई; अतः वह बोली-“मैंने तुम्हें मारने को तो नहीं कहा माँ जी ! क्यों झूठमूठ कहती हो। हाँ, मैं मार तो चुपचाप किसी की न सहूँगी । अपने मां-बाप की 'नहीं सही तो किसी और की क्या सहूँगी ?
“चुपचाप न सहेगी तो मुझे भी मारेगी न ? वही बात तो हुई। यह मखमल में लपेट-लपेट कर कहती है तो क्या मेरी समझ में नहीं आता ।”
मांजी के जोर-जोर से रोने के कारण आसपास की
कई स्त्रियाँ इकट्ठी हो गई। कई भामा की तरफ़ सहानुभूति रखने वाली थीं कई मांजी की तरफ; पर इस समय
मांजी को फूटफूट कर रोते देखकर सब ने भामा को ही
भला-बुरा कहा । सब मांजी को घेरकर बैठ गई ।
भामा अपराधिनी की तरह घर के भीतर चली गई ।
भामा ने सुना मांजी आसपास बैठी हुई स्त्रियों से कह
रही थीं-आप तो दोना भर-भर मिठाई मंगा-मंगा कर