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[ मछुआ की बेटी
 


कुछ समानता देख पड़ी । तब तक तिन्नी ने गले से ताबीज़ निकाल कर राजा साहब के सामने कर दिया। राजकुमार का हृदय बड़े वेग से धडक रहा था । तावीज़ हाथ में लेते ही राजा साहब ने 'मेरी कान्ती' कहते हुए तिन्नी को छाती से लगा लिया । यह वही तावीज़ थी जिसे ज्योतिषी के आदेश से राजा साहब ने पुत्री के गले में पहिनाया था।

पिता-पुत्री और भाई-बहिन का यह अपूर्व सम्मिलन था। सब की आँखों में प्रेम के आँसू उमड़ आए ।

[ ५ ]

अब महल के पास ही चौधरी के रहने के लिए पक्का मकान बन गया है। चौधरी अपनी स्त्री समेत वहीं रहते हैं । अब उन्हें नाव नहीं चलानी पड़ती, रियासत की ओर से उनकी जीविका के लिए अच्छी रक़म बाँध दी गई है। राज-महल में रहती हुई भी कान्ती चौधरी के घर जाकर तिन्नी हो जाती हैं। अब भी वह चौधरी के साथ उनकी थाली में बैठकर चौधराइन के हाथ की मोटी-मोटी रोटियाँ खा जाती है।

तिन्नी को बहिन के रूप में पाकर कृष्णदेव को कम प्रसन्नता न थी। वे तिन्नी को साथ चाहते थे-चाहे वह पत्नी के रूप में हो या बहिन के।

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