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एकादशी

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शहर भर में डाक्टर मिश्रा के मुक़ाविले का कोई

डाक्टर न था । उनकी प्रैकटिस खूब चढ़ी- बढ़ी थीं। यशस्वी हाथ के साथ ही साथ वे बड़े विनोद प्रिय, मिलनसार और उदार भी थे। उनकी प्रसन्न मुद्रा और उनकी उत्साहजनक बातें मुद्दों में भी जान डाल देती थीं। रोता हुआ रोग भी हंसने लगता था। वे रोगी के साथ इतनी घनिष्टता दिखलाते कि जैसे बहुत निकट सम्बन्धी या मित्र हो। कभी-कभी तो बीमार की उदासी दृर ने के लिए उसके हृदय में विश्वास और आशा का संचार

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