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[ एकादशी
–“क्यों नहीं ? हमारी दादी कहती हैं कि हमें नेम धरम
से रहना चाहिए ।"
डाक्टर साहब ने दिन में बहुत से रोगी देखे, बहुत से बच्चों से प्यार किया और संभवतः दिन भर चह बालिका को भूले भी रहे । किन्तु रात को जब सोने के लिए लैम्प बुझा कर वे खाट पर लेटे तो बालिका की स्मृति उनके सामने आ गई। वह लज्जा और संकोच भरी आँखे,वह भोला किन्तु ढृढ निश्चयी चेहरा ! वह मिठाई न लेने की अस्वीकृति का चित्र ! उनकी आँवों के सामने खिच गया।
[ २ ]
बाद में डाक्टर साहब को मालूम हुआ कि वह एक
दूर के मुहल्ले में रहती है। उसका पिता एक गरीब ब्राह्मण
जो वहीं किसी मन्दिर में पुजारी का काम करता
है। अभी दो वर्ष हुए जव वालिका का विवाद हुआ था
और विवाह के छै महीने बाद ही वह विधवा भी हो गई।
विधवा होते ही पुरानी प्रथा के अनुसार उसके बाल काट
दिए गए थे। यही कारण था कि उसका सिर मुंडा हुआ
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