अंत तक कुएं पर का सारा क़िस्सा उन्हें सुना दिया। इस पर अम्मा जी और पतिदेव दोनों ही की झिड़कियाँ मुझे सहनी पड़ी। साथ ही ताक़ीद भी कर दी गई कि मैं अब उनसे कभी न बोलूं।
क्या पूछते हो? उनका नाम? रहने दो; मुझसे नाम न पूछो। उनका नाम जुबान पर लाने का मुझे अधिकार ही क्या है? तुम्हें तो मेरी कहानी से मतलब है न? हाँ, तो मैं क्या कह रही थी?—मुझसे कहा गया कि मैं उनसे कभी न बोलूं। यदि यह लोग फिर कभी मुझे उनसे बोलते देख लेंगे तो फिर कुशल नहीं। मैंने दीन भाव से कहा, "मुझसे घर के सब काम करवा लो; परन्तु कल से मैं पानी भरने न जाऊंगी।"
इस पर पतिदेव बिगड़ कर बोले—तुम पानी भरने न जाओगी तो मैं तुम्हें रानी बना कर नहीं रख सकता। यहाँ तो जैसा हम कहेंगे वैसा करना पड़ेगा।
उसके बाद क्या बतलाऊँ कि क्या-क्या हुआ? ज्यों-ज्यों मुझे उनसे बोलने को रोका गया, त्यों-त्यों एक बार जी भर कर उनसे बात करने के लिए मेरी उत्कंठा प्रबल होती
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