पृष्ठ:बिखरे मोती.pdf/१७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
बिखरे मोती ]
 
[ २ ]

इसकी ख़यर ठाकुर , साहब के.पास पहुँची। अमराई उन्हीं की थी । अभी तीन.ही महीने पहिले वे राय साहेब हुए थे। आनरेरी मजस्ट्रिट तो थे ही, और थे सरकार के बड़े भारी खैरख्ह । जब उन्होंने सुना कि असराई। तो असहयोगियों का अज्ञा बन गई है; प्राय:इस प्रकार वहाँ रोज ही होता है तो वे वड़े घबराए, फौरन घोड़ा कसवा कर अमराई की और चल बड़े; किन्तु उनके पहुँचने के पहिले ही वहाँ पुलिस भी पहुँच चुकी थी। ठाकुर साहब को देखते ही दरोगा नियामत अली सने विगड़ कर कहा---ठाकुर साहब ! आप से तो हगें ऐसी उम्मीद न थी। मालूम होता है कि आप भी उन्हीं में से हैं। यह सब' आप की ही तबियत से हो रहा है। लेकिन इससे अमन सें खलल पड़ते का खतरा.है । आप ५ भिनट के अन्दर ही यह सब मजमा यहाँ से हटवा दीजिये; वरना हमें मजवूर होकर लाठियाँ चलवानी पड़ेंगी ।

ठाकुर साहब ने नम्रता से कहा-दरोगा जी जरा सत्र रखिए, मैं अभी यहाँ से सब को हटवाए देता हूँ । आपको लाटियाँ चलवाने की नौवत ही क्यों- आएगी ? नियामत

१५७