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बिखरे मोती ]


मुझ से गाने के लिये आग्रह करते । मुझे तो अब गाने- बजाने की ओर कोई विशेष रुचि न रह गई थी; किन्तु छोटे राजा के आग्रह से मैं अब भी, कभी-कभी गा दिया करती थी । एक दिन की बात है। जाड़े के दिन थे; किन्तु आकाश बादलों से फिर भी ढका था । मैं अपने कमरे में बैठी एक मासिक पत्रिका के पन्ने उलट रही थी; इतने में छोटे राजा आए; मुझ से बोले, मंझली भाभी कुछ गा कर सुनाओ ।

मैंने बहुत टाल-मटोल की; किन्तु छोटे राजा न माने; बाजा उठाकर सामने रख ही तो दिया। मैंने हारमोनियम पर गीत गोविन्द का यह पद छेड़ा-

         '"बिहरत हरिरिह सरस बसन्ते ।
    नृत्यति युवति जनेन् समं सखि विरहि जनस्य दुरन्ते
    ललित लवंग लता परिशीलन कोमल मलय समीरे ।
   मधुकर निकर करम्वित कोकिल कूजत कुंज कुटीरे॥”

मास्टर बाबू भी, न जाने कैसे और कहाँ से, आए और पीछे चुपचाप खड़े हो गये । छोटे राजा की मुस्कुराहट से मैं भाँप गई; पीछे फिर कर जो उन्हें देखा तो हारमोनियम

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