[ मंझली रानी
सरका कर मैं चुपचाप बैठ गई । वे भी हँसकर वहीं बैठ गये, बोले, “मंझली रानी ! आप इतना अच्छा गा सकती हैं, मैंने आज ही जाना ।
छोटे राजा-अच्छा न गाती होतीं तो क्या में मूर्ख था,
जो इनके गाने के पीछे अपना समय नष्ट करता है?
इधर यह बातें हो ही रहीं थीं कि दूसरी तरफ से पैर
पटकती हुई बड़ी रानी कमरे में आई, क्रोध से बोली- यह घर तो अब भले आदमी का घर कहने लायक रह ही नहीं गया हैं । लाज-शरम तो सब जैसे धो के पी ली हो । बाप रे बाप ! हद हो गई। जैसे हल्के घर की है, वैसी ही हल्की बातें यहाँ भी करती हैं । पास-पड़ोस वाले सुनते होंंगे तो क्या कहते होंगे ? यही न, कि मंझले राजा की रानी रंडियों की तरह गा रही हैं। बाबा ! इस कुल में तो ऐसा कभी नहीं हुआ। कुल को तो न लजवाओ देवी ! बाप के घर जाना तो भीतर क्या, चाहे सड़क पर गाती फिरन' ! किन्तु यहाँ यह सब न होने पावेगा। तुम्हें क्या ? घर के भीतर बैठी-बैठी चाहे जो कुछ करो, वहाँ आदमीयों की तो नाक कटती है।