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बिखरे मोती ]


थी। आज मैंने उनका रुद्र रूप भी देखा । क्रोध से पैर पटकते हुए वे बोले- किरणाकुमार, इस कमरे में तुम किसके हुक्म से आए ? मास्टर बाबू भी उसी स्वर में बोले-मुझे किस कमरे में जाने का हुक्म नहीं है ?


बड़े राजा–मास्टर बाबू, अब यहाँ से चले जाओ, इसी में तुम्हारी कुशल है ।


वे-मुझे ऐसी कुशल नहीं चाहिए। मैं पापी नहीं हूँ जो कायर की तरह भाग जाऊँगा । जाने से पहिले मैं आप को बतला देना चाहता हूँ कि मैं और मंझली रानी दोनों ही पवित्र और निर्दोष हैं। यह हरक़त ईर्ष्या और जलन के ही कारण की गई है।

बड़ी रानी गरज उठीं-“उलटा चोर कोतवाल को डाटे; चोरी की चोरी, उस पर भी सीना जोरी । मैं ! मैं ईर्ष्या करूगी तुमसे ? तुम हो किस खेत की मूली ? मैं तुम्हें समझती क्या हूँ ? तुम हो एक अदना से नौकर और वह है कल की छोकरी; सो भी किसी रईस के घर की नहीं । ईर्ष्या तो उससे की जाती है जो अपनी बराबरी का हो । फिर बड़े राजा की तरफ़ मुड़कर बोलीं-तुम इसे ठोकर मार के निकलवा

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