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ठाकुर खेतसिंह, इस नाम को सुनते ही लोगों के मुँह पर घृणा और प्रतिहिंसा के भाव जागृत हो जाते थे । किन्तु उनके सामने किसी को उनके खिलाफ़ चूँ करने की भी हिम्मत न पड़ती। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, किसी भी रूप से कोई ठाकुर खेतसिंह के विरुद्ध एक तिनका न हिला सकता था। खुले तौर पर उनके विरुद्ध कुछ भी कह देना कोई मामूली बात न थी। दो-चार शब्द कह कर कोई ठाकुर साहब का तो कुछ न बिगाड़ सकता परन्तु अपनी आफत अवश्य बुला लेता था।

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