पृष्ठ:बिखरे मोती.pdf/७३

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एक बार इस प्रकार ठाकुर साहब के किसी कृत्य पर अफ़सोस ज़ाहिर करते हुए मैकू अहीर ने कहा कि “हैं तो इतने बड़े आदमी पर काम ऐसे करते हैं कि कमीन भी करते लजायगा ।” बस, इतना कहना था कि बात नमक- मिर्च लग कर ठाकुर साहब के पास पहुँच गई और बिचारे मैकू की शामत गई। दूसरे दिन डबोढी़ पर मैकू बुलाया गया। दरवाजा बन्द करके भीतर ठाकुर साहब ने मैकू की खुब मरम्मत करवाई और साथ ही यह ताकीद भी कर दी गई कि यदि इसकी खबर जरा भी बाहर गई तो वह इस बार गोली का ही निशाना बनेगा । मैकू तो यह जहर का सा घूँट पीकर रह गया, किन्तु मैकू की स्त्री सुखिया से न रहा गया; उसने दस-बीस खरी-खोटी बककर ही अपने दिल के फफोले फोडे; किन्तु यह तो असम्भव था कि सुखिया दस-बीस खरी-खोटी सुना जाय और ठाकुर साहब को इसकी ख़बर न लगे।

नतीजा यह हुआ कि उसी दिन रात को मैकू के-झोपड़े में आग लग गई और उसकी गेहूँ की लहलहाती हुई फसल घोडो़ से कुचलवा दी गई। दूसरे दिन बेचारे मैकू को बोरिया-बँधना बाँघ कर वह गाँव ही छोड़ देना पड़ा।

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