कर मरी हो, किम्वां और किसी ने ही उसे मारा हो, दोष मेरेही ऊपर पड़ैगा सब जने मेरा सन्देह करेंगे। अनेक लोग अनेक बातें कहेंगे। थाना पुलिस होगा। अपमान लान्छना होगी। नवीन! तू मरी सो मरी, मुझे क्यों मार गई?।
बिरजा ने शेष में अनेक चिन्ता के पर दीर्घनिश्वास परित्याग करके कहा कि आज से मेरा अन्न जल इस घर से उठ गया। यदि नौका डूबने के समय मरती तो इतना दुःख न होता अब क्या करूं? अनेक भावना करके बिरजा ने स्थिर किया कि इस स्थान का परित्याग करनाही परामर्श है, यह स्थिर सङ्कल्प करके वह धीरे २ रात्रि रहते २ भट्टाचार्य का घर छोड़कर चल दी ।
षष्ठाध्याय ।
रात्रि प्रभात हो गई, सब से पहिले भवतारिणी खिड़की के घाट पर गई। वायु के हिल्लोल से नवीनमणि का मृत देह घाट के दक्षिण पार्श्व में आय गया भवतारिणी सहसा मरा मनुष्य जल में तैरता देखकर थहराने लगी। उसे भय हुआ, किन्तु उसका पाद संचार नहीं हुआ, स्तम्भित की न्याय दण्डायमान रह गई। इच्छा थी कि पीछे फिर कर घर में चली जाऊँ परन्तु पद युगल उस्की इच्छा के अनुगत नहीं हुये। वह दण्डवत् खड़ी रही। जितने