पृष्ठ:बिरजा.djvu/२८

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काल उसकी दृष्टि उस मृत देह की ओर रही, उतने काल वह एक पांव भी पीछे नहीं हट सकी अब ज्योंही उसकी दृष्टि अन्य दिशा में पतित हुई, त्योंही उसने पीछे हटने का आरम्भ किया। खिड़की के हार पर्यन्त धीरे २ गई, द्वार अतिक्रम करते मात्रही जई ऊर्व्दश्वस स से दौड़कर एकबार में ही अपनी कक्ष में घुस गई। गोविन्द ने पत्नी का ऐसे भाव से गृहप्रवेश देखकर शय्या से उठकर पूछा "क्या वृत्तान्त है? जो ऐसा दौड़कर आती हो?"। भवतारिणी ने धननिश्वास त्यागजनित अस्पष्ट स्वर से कहा "घाट पर मुर्दा पड़ा है।"

गो०—घाट पर मुर्दा पड़ा है।

भ०—हां देखो।

गो०—तुमने और कुछ भी देखा है?

भ०—नहीं, मुर्दा पड़ा है, और अब देखें, चलो।

गोविन्दचन्द्र देखने चले, भवतारिणी उनके पीछे पीछे चली। जाने के समय भवतारिणी ने नवीन के शयन कक्ष के झरोखे में आघात करके नवीन को पुकारा। जब उत्तर न पाया तो कहा, 'अभागी! उठ उठ, देख घाट पर मुर्दा पड़ा है' यह कहकर द्रुत पद से स्वामी का अनुगमन किया। उसके जाने से पहिले ही गोविन्द घाट पर पहुंचकर गाल पर हाथ रखकर सोच कर रहे थे। भव को उनके