डाकृर शिवनाथ बाबू कलकत्ते में डाकृरी कार्य में बड़े विख्यात मनुष्य नहीं थे। कलकत्ते में अनेक डाकृर हैं, हाईकोर्ट के अनेक वकीलों के समान उनका वास व्यय पर्यन्त नहीं चलता शिवनाथ बाबू इस दल के डाकृर नहीं थे, परन्तु एक विख्यात डाकृर भी नहीं थे, उनके प्रतिवासी, आत्मीय, बन्धु, बान्धवों को छोड़ कर उन्हें और कोई बड़ा नहीं कहता था। अस्पताल में जो वेतन पाते थे उसी से स्वच्छन्द काम चलता था। शिवनाथ बाबू एक समय में ब्राह्मण थे, गुप्त में यज्ञोपवीत भी त्याग कर दिया था, परन्तु सुनते हैं कि माता की मृत्यु के पीछे फिर वैदिक हो गये, ब्राह्मण होकर स्त्री को विलक्षण लिखना पढ़ना सिखा दिया था और बहुत सी स्वाधीनता भी दे दी थी, पर अब वैदिका होने से वह स्वाधीनता न छीन सके। अब आपत्ति कर भक्ष्य अपेक्षाकृत अधिक खाया जाता था, परन्तु उसमें कुछ दोष नहीं था, क्योंकि वैदिक धर्म का आवरण अंग में था। यह जो कुछ हो, शिवनाथ बाबू बड़े भद्रलोक थे, और उनकी पत्नी कात्यायनी भी बड़ी दयावती अयच सुशीला थी। हमारी बिरजा इन्हीं के घर में रहती थी, जिस अवस्था में अंग्रेज पुरुष और स्त्रियों को युवक युवती कहते हैं, शिवनाथ बाबू और कात्यायनी की वही अवस्था थी। अर्थात् चालीस और पैंतीस थी। बिरजा शिवनाथ बाबू के
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