पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१०८

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८. विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। बधिर भले वे कान जे प्रीतम विछुरतसुनें। बोधा धृक वे पान प्राननाथ विठुरत रहें। रसना जरि किन जाय जान कहै दिल जानसो। गेहलगै किन जाय भाव बिना भाकसीसम । नेह करे का जात सबकोऊ सब से करें अरे कठिन यहबात करिबो और निवाहियो ।। (माधोबचन) दो. मेरेमनकी बात सुन अहे भावदी बाल । जो सों बिछुरन परै तजों प्राण ततकाल ॥ छन्दसुमुखी। इहिविधि कामिनी समझाय। लीन्हीं माधवाउर लाय ॥ केशर मंडिउरज विशाल । लाग्यो करन रसमय ख्याल । दिनके अंतही ते कंत । वितरेकेलि खेलिअनंत । सारी रोनिरसब शहोइ। दोनों रहेनिदा भोइ ॥लागे झपकि तियके नैन ।माधो- फिरन बोल्यो वैन । चितमें करीचिन्तायेह । निवहत इश्कराखेदे ह ॥ देहीगये सर्वसुजाय । फिरनहिं बेदकहत उपाय ॥ मोपरकरै भपति तेह । कैसे होत अविचलनेह ।। दो० करकागद लै लेखनी रुकालिखो बनाय। करपरधरि कंदलाके लीन्हों बीनउठाय ।। तियको हियसे लायकै निज जियको समझाय । सूरतलिखि हगनीर भरि लखि २ कहि २ हाय ॥ हिय हिलकत सुसकत सहित साहसनिजउरधारि। चाहि २ तियबदनछवि गजरालयोउतारि॥ सो० चल्यो विप्रतजि प्रीत करवतदै निजजीवको। बिरह पुरातन मीत संगबरोठे ते भयो । चौ० चलि माधोनिज डेरेआयो । सोबत बरई सुवन जगायो । पूरब कथा तासु पैबरणी । अपनी नृपकी तिनकी करणी ॥ छंदपधारिका । गुल जार मित्र सुनेह प्रवीन । मम भाललि ख्यो विधि सुक्ख हीन ॥ सुख चाहि जाहि दिशिचलौ मित्र ।