पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा । चौ. शंकरसोंबिनतीयह कीन्हीं।पुनिकरखरी माधवालीन्हीं। जाते असरहोय नृपपाहीं । दोहा लिख्यो सिंधु मठमाहीं॥ दो• धनगुण विद्या रूपके हेती लोग अनेक । जोगरीब पर हित कर तेनहिं लाहियतुएक ॥ चौ. दोहालिखिशिव मठमें माधोनिजअस्थाने आयोबाधो॥ दारमाफल प्रवीन को ल्यायो । शिव मठको विरतंत सुनायो। दो० नृप विक्रम अस्नान करि भोर गयो शिवपास । लखि दोहा मठमें लिख्यो बांचत भयो उदास ॥ चौ० राजा मनमें चिन्ता करै । अर्थ न दोहाको अनुसरे ॥ है कारण या दोहा माहीं। पै हित जान परत है नाहीं॥ सो० दरद भरे नर ईश दोहाको पल दै लिख्यो। काज पराये शीश देत एक विक्रम सुन्यो । चौ० मनमें गुणत भूपघरायो। कारणनाकाहुये सुनायो । चिन्तारहीचित्तमेंलागी । हियेमांझकरुणाअतिजागी॥ दो अन्य दिवस मठशंभुपै ज्वावमाधवापाय । फिरगाथा निजदरदको मठपैलियो बनाय ॥ गाथा। कूताकि अंग पुकारं । जौनराम अवधेशपुकार ॥ विठुरंदरदअपारं । सहजानंतिमाधवा बिरही। कुंडलिया। विरहीजनकी पीरको अवजगजानकौन । अव. धनाथजानतहतेतिनसोसाधोमौन ॥ तिनसो साधोमौन जिन्हें विछुरीतीसीता। अबकहिये कितजायकठिन बिछुरनकोगीता ॥ बहुत भूत किहि हेतसुनत निजुदुख नहिं थिरही। या कलिमें करतार करै काइजिन विरही। दो० अन्य दिवस महराज यह मठमें गाथादेखि । अपने बलकी बारता मठमें लिखी बिशेखि ॥ गाज परताराज में मुखताको जरिजाय। विरहीदुख टारेबिना अन्नपान जो खाय । चौ० पूजाकर नृपडेरेआयो। सचिवसमाज सबैबुलवायो ।