पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१२२

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बिरहबारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा । तिनों कही आपनीजीकी । पूरबकथा तासु बिरहीकी ।। छन्दपद्धरिका । इकविरह दुखीनृपनन माह ॥ आयोअचा- नजान्यो सनाह ॥ इहिबेगतासु कीजैतलास । है विरहवेदनाभई जास ॥ दुखहरों कराँताको सुवैन । तबराज करौं फिरके उजैन । हाँ अन्न पान करिहौं न सोय । जबलौंन वियोगी सुखीहोय ॥ दो० ढोल दिवायो शहरमें घर २ करोतलास । कोविरहीनर कहां है लै आवो मो पास ॥ छन्दभुजंगप्रयात । हुकुमराय को पाय मंत्रीहँकारे। सहसएक कीन्हेंजमा ढोलवारे ।। बजेढोल सारीपुरी शोर छायो।वियोगीको नाहींकहूं शोधपायो॥ चौ० पुरवासी सबही उठिधाये। किहि कारण ये ढोलपिटाये। तिनसों कहै जानो तुम ऐसी। किसाएक हमसुनी अनैसी॥ विरही एक नग्रमें आयो। ताको चिह्न नृपति कछुपायो । राजाकरी प्रतिज्ञा एही । जौ लौ सुखी न होय सनेही ॥ करना छुवों पान अरुपानी । अन्नखान की कौन कहानी॥ त्यावै खोज बियोगी कोई । तापर कृपाराज की होई ॥ दो० योंसुनि गुनि निजचित्त में बारवधूवररूप । बिरहीको ल्यावन कह्यो धीर धरहुतवभूप ॥ छन्दतोटक । विरहीको खोजन चालचली। बरकेसरि अंगन अंगमली ॥ शशि आनन कानन नैनछिये । लखि हाटक कुंभ उरोज हिये ॥ मदमत्त मतंग यथागवनी । प्रौदासबकोक कलारवनी ॥ कर बीन लिये मगमें डगरी । लहिमोह करै सबरीनगरी॥ चौ० पुनि तिहिबाला भैरों गायो। ताको सुरमाधौने पायो। अपने दिल में यह विचारी। यह है कोई वियोगिनि नारी ।। प्रिय बिछुरे मनको समझावत । गौरीसमय भैरवीगावत ॥ ताके निकट माधवा आयो । तौलगवाला पूरवीगायो ।। छन्दचौपैया। बीणाडार पुकारयार को पुनिवह रोवन लागी।