पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

९६ बिरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा । एक दिवस रजनी पुनिगई । नृपघर नहीं मुखारी भई । दो. कविप्रसुन विदग्धाहौंन लहाँ तुवसाथ । अमिलसंग लखिकेहंसे निद्रायुतनरनाथ ।। चौ० रविकेउदय विदग्धानारी । महाराजको आयजुहारी ॥ चटकी छांह बाटिकामाहीं । कस्यो ठीक मैं बिरही काहीं ॥ माधोनामचिन अति सुन्दर । व्यकिशोरज्यों लसतपुरंदर ॥ यहसुनराजा स्थपहुंचायो । तापै चढिमाधो नलआयो । इतिश्रीमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषाविरहीसुभानसम्बादे उज्जैनखंडे अष्टादशमोतरङ्गः १८ ॥ इश्कदोटूकनाम ॥ यथाप्रसङ्ग ॥ उनईसवां तरंगप्रारम्भः॥ छंदसुमुखी। माधोत्रायो नृपपास। राजतरूपमदन परकास। प्रेरितविरहवलदेह ॥ मूरतिवंत लसतसनेह । राजतकेश मुकुट सुढार ॥ कंदूपदेहनिजअवतार॥केसरखोरलकुटीहाथ ओपीत पटरतिनाथ ॥ कुंदनबरण अरुणकटाक्ष । भरेसनेह॥ धोतीकमल पत्ररसाल । पाउँन पांवड़ी लहि लाल ॥ गजरा दुवोहाथन माहिं । गल में मालिका बहुआहिं ॥ नृपदरबार पहुंच्यो आय। क्षितिपतिउठो दर्शनपाय॥ दो. माधोनल को देखिकै उठो तुरत अवनीश । महाराजको देखिकै माधोदई अशीश॥ (आशीर्वाद) स० मूलन संगहुती जबलों दरियाउ में जबलों बारिभरा है। रामको नाम महीतल में जबलौं जगहोत बिरंचिकराहै । जौलों सुरेश गनेश दिनेश सुमेरध्रुवा जबलौं अचराहै । तौलग राज कर महराज जू जौलग शेशके शशिधरा है। दो० पढि कवित्त तंदुलधरे महाराज के शीश। पुनिमाधौ ऐसी कहीक्षेम युगतअवनीश ॥