पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१२५

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विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। चौ. कहीनृपति माधोद्विजपाहीं । तुम्हरीक्षेमक्षेमहमकाहीं।। सुखयुत ब्रह्मवंश है जोलों । मेरोराज भूमितक तौलौं। छद्रु० । द्विजमाधवा तिहिबार। नृपबचन सुनतउदार ॥ दृ. गडभकि आयोबारि । नृपरह्यो ताहि निहारि ॥ पुनि कह्योद्विज परयेह । किहि हेत कंपित देह ।। अंशुमाचलें भरि नैन । हमहेतु सोसमझेन ॥ दो. पुराचीन मेरोहितूसो बिछुरे तोहिं देखि । याते मेरेदृगनमें पानी भयो बिशेखि ॥ कवित्त । जन्मसंघाती चारयारसरदार मोतैबिछुरेरिसाइ मिला भेंटहोत तनमें। एकैसुतरातएकै दूरखड़े थहरात एकै हौंन देखे जातगये कौनबनमें ॥बोधाकविचलउज्जैन नगरीको मेरोदारि दसनेही सोहिरायगयोवनमें । रोगुगयो डेराते बियोगगयो मार ते योग जानहारभयो सँयोगु आयो मनमें ।। छ मो.। जिमीपरले अवतीरठठाइ । धरोतिहिपै थरिया अब आइ ॥ चढ्यो तिहिऊपर दैवीपांउ लहै दुहरी तिहरी भरयाउ ।। बटाकरएक फिरावतजात । तहांदुहरी लहिकै थहरात ॥ कंप नर्हिपावधरै नहिंधीर । टरेनतहांटठियाल बीर ।। दो० कलाएक अद्भुतकरी माधोनलगुनवान। धायोकाचे सूतपर डोरी एकप्रमान.॥ मैलेबटा अकासको इततै दुहरीलेइ । दांतदाब अधबीचह पगथारीपरदेइ ।। मनेकरी महाराज तब फुरवरहु धरलीन्ह । निजआसन बैठारि के दानलक्षइक दीन्ह ।। माधोनलकी अोरलखि शोच सहित नरनाह । बीरादे पूंछनलग्यो नामग्राम चितचाह। माधोसंयुत। दिजमाधवा ममनामहै।पुहुपावती ममधामहै।तहँ भूप गोविन्दचन्दजू । लहिसोमवंशअनंदजू ॥ कहिये गढ़ावह