पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१४१

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विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। ११३ के वियोग । तब सचिव को बिगरयो सँयोग ॥ दिजमरयो नृपमरिहें विशेख । नहिंतजत टेकक्षितिपाल देख ॥ कोदेय मरयो ब्राह्मण जिवाय । किहि भांति जियतजग रहैंराय ॥ दो० रूसेकोई मनाइये सर्बसुकहिये दैन। मुवानजीवै साहिबा योवनगयो फिरैन । चौ. माधोमस्यो कंदला नारी। इनकी यहीनिमित्तविचारी। हमरेमन प्रतीति असहोई । मरेसाथ मरजात न कोई ॥ कहें नृपतिसुन सचिवसयाने । मोरसुयश क्षिति मंडलजाने । सोसुन गयो विप्रमो पासा। करनिज मित्र मिलनकी प्रासा।। दिजके जिय प्रतीति असहोई । विक्रम करी सँयोगी मोही ॥ मरी कंदला माधौदोई । यह प्रकाश लोकनमें होई ।। मैं अबमुरकि उजैने जाऊं। कहौ सुयशजग में कसपाऊं ॥ सुयश सहित मरखोभलसोई। अयशन जियतजगतजग कोई।। दो. सुरनराख पाल्यो न प्रण करौं जीवको घात। एते पै बिक्रम जिये अचरज कैसीवात ॥ सुन २ बिक्रम के बचन बोल्योसचिव सुजान। सुयश काज संसार में काहे तजौ नपान ।। स. अवगुण शोककरैन कहा इक सोभेजहांये तहां सबरेहैं। दीनदयालगमें जिनजे तिनके तनपातक पुंजभरे हैं ।। मूरख पु. रुषहीनबहै ते सदादुःख दारिद सिंधुपरे हैं । सत्यसो वित्तगयो जिनको जबते लखिये तवहीं वै सरे हैं । दो० निधन न कहिये पंडितन मूरख धनियनमान। जियत न कहिये अपयशी यशीमुयेजनजान ।। मंत्रीवचन छप्प।धनरवि सहिबिपति दामदैवाम बचाइय । बासत्याग त- जिदेश देशतजि घरहितआइय ॥ घसिराखै ये प्रान भानतें सब कछु हो । धन प्यारापरिवार देश दुर्जन कह खोवै । तजियेन