पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१५४

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१२६ विरहवारशिमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा धरखतधर। भूमिशैल दिगीशथर २॥ बजत तरपड़मुंडभट २ । शूलखड्ग कृपानखट २॥ घड़ाघरधर कंतढल्लन । झरत शोणित बुंदझल्लन ॥ परेशोणित कुंडरुंडहिं । भकाभक भभकंत सुडह। सरासर सरसेत सरखर । कूरवकूकत करवर ॥ कटत शूरसावंत फक २ । कँपत कायर कूरधक २ ॥ जड़ाजड़जड़कंत दंतन । घनाघनरव घोरघंटन ॥ लसतशैल कृपानझल २ । ताकिशोणि- त सकल जलथल ॥ सिंधुवार प्रचंड उछलत । सहित मेहमुनी शमलकत ॥ गिरिय भावा मल्ल भारी। यमानाच्यो शंकरदइता- री॥ सहित दससावंथकुट्ठिय । बीर गौर हम्मीहट्ठव ॥ दो सहसतीस कुट्टिव कटक खड्ग म्यानयुतकीन्ह । तज्यो बीर हम्मीर तनपिंड प्रानकहँदीन्ह ॥ मैढ़ा मल्ल समरथ इत उतरन जोर पमार। खड़े खेत हथियार युतरवि अथयो तिहिबार ।। छंदझलना । तबकडो मैदा मल्ल सुन रंजोरसिंह पमार। रविगयो अपने धामको अब तुही क्यों नपधारवि उदय फिर रणमंडवी नहिं छोडवीयहखेत । है श्वास जौलौं देहमें तौलों न छोड़ोंनेत । यहकौल करि दोनों पधारै गयो निज २ ऐन। विरदंत सबरौ पाइयो महरा ज कंदिपसैन ॥ रविके उदय रनको सज्यो हरवल्ल मैदामल्ल । इकलक्ष तरल तुरङ्गले शतसात मत्तमतल्ल ॥ दो तनभाई पच्चीसलै आयो उतरन जोर । हैजाके बलजोर को दोनों दल में शोर ।। इतिश्रीमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषाविरहीसुभान सम्बादे युद्धखंडे २३॥ सो मैदामल्लबलवान कह्यौ बीररण जोरसों। तूमति खोवै प्रान विनुदल बलनिजगर्भवसि ॥ कह्यो बीर रंजोर मोरतोर शरियत यही । बाने डारि छोर जो हारैताको नृपति॥