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पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१७९

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विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। १५१ गवरहि ध्याय सगुन शुभ पाई । मंगल बारको लगन लिखाई।। जेठ कृष्णपंचम तिथिसाजी । घरी दोइगतराज विराजी॥ वृश्चिकलगनश्रवण तहँ पायो । तीजे मकरचन्दुमाआयो ।। चौथे शनि पाँचे भृगुहोई । नवमे सुन्दर सुरगुरु सोई ।। दूजेकेतु सातबुध सोई । अठयें राहु अशुभ नहिं होई ।। दशमें कुज सुन्दर शुठिआही। गेरहें सुन्न अशुभकछुनाहीं॥ लिखी लगन पंडित सुर ज्ञानी । शोध मुहूरत अति सुखदानी।। हरद द्रब्य चावर श्री चन्दन । जरकस मय कपड़ा आनन्दन ॥ पाँचलाखकी लगन सवारी। हय गजरथ सब दिय सुखकारी॥ नाऊ ब्राह्मण भाटपठायो । चलि बिद्या पति के घर आयो । समाचार विदुवा ये पाये। कुटुम्ब सनेही सब बुलवाये ॥ कुटुम्ब सहित विक्रम ढिगायो । घरको सबै प्रसंग सुनायो । सुनसजी अनेक सुखपायो । माधोनल को पासबुलायो । परयोतातके पांयनमाधो। पुनि सनमुखहियलाग्योसाधो॥ तातपूत एकत्र भयेदोई। महाराज विक्रम पुन सोई ।। लेड लगन यहबात बिचारी । बिदाकरी राजा तिहि बारी॥ गजरथ और जबाहर दीन्हों। मंत्रिन सहित बिदानृपकीन्हों। कोटिक दीन्ह खजानासोई । तुरत ब्याहुकी त्यारीहोई ।। धन्य २ विक्रम महराजा। अपने हाथ माधवै साजा। माधो संहित कंदला नारी । रथऊपर बैठेतिहि बारी॥ केतक भूप सुभट हयहाथी । कर पठये माधो को साथी॥ काम कंदला सहित सुहायो। दूलह विप्र बनोघर आयो ।। दो० कलश पाँबड़े आरती गीतसुमंगल गाय । माता युत नारी सबै मिलीं माधवै प्राय ।। पहुंचायोटीका सुकरि गौरि गणेशमनाय । पुतहू युत निज पूतको माता चली लिवाय ।। चौ० पूतसहित पुतहू घरआई। घरीचार तक बजी बधाई ॥ दानबहुत मँगनों कह दीन्हों। निवतो सबैनग्र को कीन्हों।