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पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१८०

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१५२ विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। अँगन लिपाय चौकपुरवायो । फलदानी समाज बुलवायो। इत श्रृंगार माधोको साज्यो। सोरह कला मदन तब राज्यो॥ दूलह बन नृप चौके पायो। सबहिन आंखिन को फल पायो॥ मंगल गान नारि सब गावें। पंडित लोग अचार करावें॥ पूजि गणेश लगन करधारी । भइ प्रसन्न हिमवान कुमारी ।। अर्घदीन दूलह घर आयो । धनसमूह बिदुवा ने पायो । लगन खोलि के सबहिं सुनाई । बीरादै पुनि बाँट मिठाई ।। फलदानिन जिवनार जिमावें। भांति कीगारी गावें। सजन जिंवाय बिदा पुनि कीन्हें । बजे दाम नाऊ कहँ दीन्हें । चलप्रतिया नृप के गृह आयो । समाचार सब प्रभुहिसुनायो। सुनि नृप सकल समाज बुलायो। रघूदत्तके मंदिर आयो । अँगन लिपाय दिवालपुताई । जरकसमय बखरी सब छाई ।। जातरूप मय कलश सवारी । चित्रसहित बहुधा छविवारी ।। हरित बांस मंडफ शुभ साजा। जामुन पल्लव छायबिराजा॥ नीचेजर अम्बर तनवाये । मणि मोतिन गुच्छा छवि छाये ।। सुवरणमय अनार छबि छायक । सुवरणमय,नी सब लायक पंचम खंभ जवाहिरजड़े। मंडफ मध्य खड़े सो करे । जड़ित जवाहिर बंदन वारे। पौरदार छबिदार सँभारे ॥ दार कलश मंडफ महँ सोई। जगमगमग सबठौरे होई ॥ गौरिथापि मायें सबसाजी । करें श्रृंगार नारिरत राजी॥ मोद भरी मंगल सब गावें। एकैतीया तेल चढ़ावें ॥ एकै बनिता तपैं रसोई । हरबर २ सब ठग होई ॥ कुटुम्ब बुलाय जमा सबकीन्हों। मंडफ भोग सबहिं कहँदीन्हों भोरमायनोफेर रसोई । दरो वस्त बस्ती कहं होई॥ तीयन हरदी तेल चढ़ायो। नगर मध्यनाऊ फिरवायो । बरनअठारह सब पुरवासी। पंगत बैठी देव सभासी॥ बरन २पंगत सब न्यारी। जेंवत खोवा पुरीसुहारी ॥ दूजेपुनसब कुटुम्ब बुलायो । बराभात मड़वाको खायो।।