बिरहबारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा की भूमिका ॥ सर्वरसिक जनोंको विदितहो कि आजतक यह ग्रन्थ (बिरह. वाशिमाधवानलकामकंदला)नहीं छपाऔरउनलोगोंसे बहुधा सुननेमें आया कि जिन लोगोंको इसके सुननेका संयोग भया कि क्या कहैं यह पुस्तक छपीनहीं मिलती अगर मिलती होती तो इसको प्रायः पढ़ा करते इसबात को जब हमने बहुत लोगों के मुहँसे सुनकर विचार किया कि यह पुस्तक जरूरछपवाना चाहिये परंतु यह पुस्तक किसी के पास पूरी नहीं मिलती थी तो हमने कई पुस्तकोंसे शोधकर समग्र किया और एतद्देशीस- व रसिक जनोंके प्रीति अर्थ छपवाया और इसका सर्व अधिकार श्रीयुत मुंशीनवलकिशोर (सी, आई, ई) को देकर स्वाधीन किया अब यह जानना चाहिये कि इस ग्रंथके विषय पर ध्यान देने से आप लोगों को मालूम होगा कि उस प्राचीन का लमें जब महाराज वीरविक्रमादित्यकाराज्यथालोगोंकीपीतिक- सीसची थी और धर्मका प्रचार कैसा रहा करताथा इसपुस्तक के पढ़ने से आपलोगों को विदितहोगा कि जवश्रीकृष्णचंद्रमहा राज गोकुल से द्वारावती को पधारे उस समय गोपीजन श्री य- दुरायजीकेबिरहमें अतिव्याकुलहोवनर फिरती भई और कहती भई श्रीबिहारीजी अमुकरस्थानोंमें अमुकरलीला करिहमलोगों को बश्यकरके आप श्रीद्वारकापुरीको पधारे उसी समय कामदे- व अपनीस्त्री सहित प्रकट होकर अपने कामरूपी बाणोंसे गोपी जनोंको आच्छादित करदिया तब गोपीयोंने शाप दिया कि जै से तुमने हमलोगोंको ऐसी विरहव्यथामें पीड़ितकियाहै वैसे तुम भी कलियुग में अपनी प्रियाके विरह में वियोगी होकर भ्रम रण करोगे इसीशापके कारण कामदेवको जन्म लेनापड़ा जो
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