पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/३२

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विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। हारजीत दुखसुख यथा खेलजुवाको होय ।। कवित्त । हैनानुशकिल एकरती नरसिंहकेशीशपैसाग उवाहि- बोदैवेको कोटिलौदान अनेक महेशलौं योग खरे अवगाइयो । बोधा मुशकिल सोऊनहीं जो सतीहो सम्हारो शिखीनको दाहि- बो। एकही और अनेक मुशकिल यारीकर प्यारी सों प्रीति को निबाहिबो ॥ अतिछीन मृनालता के तारहूतै तिहि ऊपरपांवदै आवने हैं । सुइबेदतै हार सखी है तहां परतीत को टाडोलदाव- नेहैं। कवि बोधा अनी घनीतेजहूत चढ़ितापै न चित्त डुगाव- नेहैं। यह प्रेमको पंथ कराल है जूतरवारकी धारपर धावने हैं। चौ० । जोनर देहदेह देवामी । तौ सनेह जिन देय बिरानी॥ जो सनेह करनी बशदही । तौ जिन बिछुरै मीत सनेही ॥ जो कदापि बिछुरै मनभावनातौजिय जाय चला तेहि दावन। छातीफट दोटूक न होई । तौ किमि जानव बिछुराकोई ॥ कुंडलिया। जासोनातो नेहको सोजिनबिछुरै राम । तास बि- छुरन परतही परतरामसोंकाम ॥ परै रामसों काम काम संसारी छुटै । छूटैन वहप्रीति देह छूटै जो टूटै॥ कहैं बोधा कवि कठिन पीर यह कहियेकासों । सोजिन बिछुरै रामनेह नातोहै जासों॥ दो। सहल बाहिबो सिंहशिर बोधा कबि किरवान प्रीति रीति निर्वाहिबो महिरम मुशकिल जान । सो०। प्राणजाहि तजिदेह देह जाय पुनि खेहहो । तौलौं निबाहै नेह पवतोमिलपियको मिले ।। ऐसी कहिये प्रीति पनपन पालै पीवसों। जीवदेहकी रीति एक बृथाही एक बिन ॥ (वारावान्य)प्रीतिपरम कहिकौननिज पतिउपपतिगणिककी। ये बिरही कहि तौन जो न होय सबते सरस ॥ दो० । होय मजाजीमें जहां इश्कहकीकी खूब । सो सांचो ब्रजराज है जो मेरा महबूब । गॉव काल बधि ज्ञान की प्रीति चारविधिमा ।