पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बिरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। चारभांति जिनके यथा विरही कहे बखान ॥ प्रथम पतंग कुरंग पुनि माधव नलकी प्रीति । चौथे यारी ज्ञान मय भुंग कीटकी रीति ।। चार प्रकार तियानकी रीझ कहत कबिलोग। धन गुण रूपशरीर लघु कै पुनि दीरघ योग॥ रूपवंत बश रूपके बिभौ विभौ वशजान। गुणके वश गुणवंततिय डील डील उनमान । अजब गजब मनकी लगन अनमिलहूलगजाय । जैसी सूरज कमल सों शशिचकोरके भाय ।। दीपक और पतंगकी आँख लगेकी प्रीति । चुम्बक जड़लोहो कठिन समस्वभाव यहरीति ॥ प्रीति अनेकन में अधिक एकरीति यहहोय । ज्यों कुरंगसुन रंगको तत्क्षणडास्त खोय ॥ चौ०। भांति अनेकप्रीति जगमाहीं। सबहिसरसकोऊघटनाहीं॥ जाको मनबिरुझो है जामें । सुखी होतसोई लखितामें । याते सुनयारीदिलदायक । कीजैप्रीति निबहिबेलायक ॥ प्रीतिकर पुनिऔरनिबाहै। सोनाशिक सबजगतसराहै।। दो। जो वैसी जोड़ी मिलै प्रीति करौ सब कोय। कामकन्दलासी त्रिया नरमाधो सो होय ॥ सवैया। रामसौनामको श्यामसोसुन्दर राधेसीवाम महेशसों योगी। कोबकतासम शेषप्रताप प्रभाकर योपुरहूत सो भोगी। बोधाबड़ाई बड़ेबिधिसों रजनीपति सौजगआननरोगी। देख्यो सुन्यो न कहूंकबहूं भयोमाधवानल सो और बियोगी॥ (सुभानउवाच) दो । अरेपिया मोजीय की शंकनिवारो येह । कोमाधो कोकंदला कैसे जुरयोसनेह ॥ (विरहीवाच्य ) रतिपतिको रतिके सहित गोपिनदई शराप । तिहि सजीवजगआय के पायो विसंताप ॥